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टोरंटो में Anti-Hindu परेड: 8 लाख भारतीयों को वापस भेजने की मांग, पीएम कार्नी पर उठे सवाल 2025

टोरंटो में Anti-Hindu परेड: 8 लाख भारतीयों को वापस भेजने की मांग, पीएम कार्नी पर उठे सवाल

टोरंटो (कनाडा):
कनाडा के टोरंटो शहर में हाल ही में एक विवादित Anti-Hindu परेड का आयोजन किया गया, जिसने भारतीय समुदाय के बीच गहरी चिंता और आक्रोश पैदा कर दिया है। इस परेड में कुछ प्रदर्शनकारियों ने खुले तौर पर भारत विरोधी और हिंदू विरोधी नारे लगाए और लगभग 800,000 भारतीय प्रवासियों को वापस भारत भेजने की मांग की। इस घटना के बाद कनाडाई प्रधानमंत्री ब्रायन कार्नी की भूमिका और चुप्पी को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।

परेड में दिखा चरमपंथी एजेंडा

यह परेड टोरंटो के Anti-Hindu डाउनटाउन इलाके में आयोजित की गई, जिसमें कुछ सिख अलगाववादी गुटों और खालिस्तानी समर्थकों की भागीदारी देखी गई। प्रदर्शनकारियों ने ऐसे पोस्टर और बैनर लिए हुए थे जिनमें “हिंदूइज़्म = फासीज़्म” जैसे भड़काऊ नारे लिखे थे। साथ ही कुछ पोस्टरों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारत सरकार, और यहां तक कि भारतीय सेना को भी निशाना बनाया गया।

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि कुछ वक्ताओं ने मंच से भाषण देते हुए कहा कि कनाडा में बसे हिंदू भारतीय प्रवासी भारत सरकार के एजेंट हैं और उन्हें देश छोड़कर वापस भारत जाना चाहिए। ये बयान न केवल सामुदायिक सौहार्द को बिगाड़ने वाले थे, बल्कि कनाडा जैसे बहुसांस्कृतिक देश की छवि को भी धूमिल करते हैं।

800,000 भारतीयों को बाहर निकालने की मांग

परेड में कुछ कट्टरपंथी नेताओं ने दावा किया कि कनाडा में बसे करीब 8 लाख भारतीय हिंदू प्रवासी कनाडा की संस्कृति और सुरक्षा के लिए “खतरा” हैं। उन्होंने कनाडा सरकार से इन सभी को “डिपोर्ट” करने की मांग की। हालांकि, यह मांग न तो व्यावहारिक है और न ही कानूनी रूप से उचित, लेकिन इस तरह की बातें करना कनाडा में बढ़ती हिंदूफोबिया की ओर इशारा करता है।

प्रधानमंत्री कार्नी की चुप्पी पर उठे सवाल

इस विवाद के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री ब्रायन कार्नी की ओर से अब तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। उनकी चुप्पी को भारतीय समुदाय ने निराशाजनक और आपत्तिजनक बताया है। भारतीय मूल के सांसदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और कनाडा में रहने वाले भारतीयों ने प्रधानमंत्री से इस मामले में संज्ञान लेने और सार्वजनिक बयान जारी करने की मांग की है।

कुछ लोगों का कहना है कि कार्नी सरकार की कथित नरमी की वजह राजनीतिक मजबूरी है, क्योंकि खालिस्तानी गुटों का समर्थन करने वाले कुछ वर्ग कनाडा की राजनीति में प्रभावशाली माने जाते हैं।

भारत की कड़ी प्रतिक्रिया

इस घटना की खबर सामने आने के बाद भारत सरकार ने कनाडाई प्रशासन से औपचारिक रूप से नाराजगी जताई है। भारत के विदेश मंत्रालय ने कनाडा में कार्यरत भारतीय दूतावास के माध्यम से एक सख्त पत्र भेजा, जिसमें कहा गया कि ऐसे आयोजन भारत की छवि और भारतीय समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने वाले प्रयास हैं।

भारत ने कनाडा से अपील की कि वह इस तरह की कट्टरपंथी गतिविधियों पर लगाम लगाए और भारतीय समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

भारतीय समुदाय में भय और नाराज़गी

कनाडा में रह रहे भारतीयों, विशेष रूप से हिंदू प्रवासियों, के बीच इस घटना को लेकर डर और नाराज़गी दोनों है। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर वीडियो और पोस्ट शेयर करते हुए बताया कि किस तरह उन्हें अपने ही शहर में असुरक्षित महसूस हो रहा है।

कुछ छात्रों और आईटी पेशेवरों ने यह भी कहा कि वे पहली बार ऐसा सोचने लगे हैं कि क्या कनाडा में उनका भविष्य सुरक्षित है या नहीं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना

कनाडा में हुई इस परेड को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया और मानवाधिकार संगठनों ने भी चिंता जाहिर की है। एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे संगठनों ने कनाडा सरकार से इस मुद्दे पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है।

निष्कर्ष

कनाडा की छवि एक बहुसांस्कृतिक और सहिष्णु देश की रही है, लेकिन टोरंटो में Anti-Hindu परेड और उस पर सरकार की मौन भूमिका ने इस छवि को गहरा आघात पहुंचाया है। भारत और कनाडा के बीच पहले से ही तनावपूर्ण चल रहे राजनयिक संबंधों में यह घटना और दरार ला सकती है।

अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री ब्रायन कार्नी इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं और क्या वह भारतीय समुदाय के भरोसे को बहाल कर पाएंगे या नहीं।

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