टैरिफ बढ़ोतरी से American market में झटका, भारतीय व्यापारियों ने मांगी सरकारी दखलअंदाजी
हाल ही में American market द्वारा आयात पर टैरिफ (शुल्क) बढ़ाए जाने के फैसले ने भारतीय व्यापारिक समुदाय में हड़कंप मचा दिया है। American market, जो भारत का एक प्रमुख निर्यात बाजार है, ने कुछ उत्पाद श्रेणियों पर शुल्क दरों में बढ़ोतरी की है, जिससे भारत से American market जाने वाले ऑर्डर अचानक होल्ड पर चले गए हैं। इससे न केवल व्यापारियों को आर्थिक नुकसान हो रहा है, बल्कि भविष्य की व्यापार रणनीतियों पर भी संकट मंडराने लगा है।
व्यापारियों की चिंता: ऑर्डर होल्ड, भुगतान में देरी
व्यापारियों के अनुसार, टैरिफ में बढ़ोतरी की वजह से American market खरीदारों ने फिलहाल अपने सभी ऑर्डर्स रोक दिए हैं। खासतौर पर टेक्सटाइल, जेम्स एंड ज्वेलरी, फार्मा और ऑटो पार्ट्स जैसे सेक्टर्स को इसका सीधा असर झेलना पड़ा है। निर्यातकों का कहना है कि उन्होंने जो ऑर्डर तैयार किए थे, वे अब गोदामों में पड़े हैं और उनके भुगतान भी अटक गए हैं।

गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों के निर्यातक संगठनों ने इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि यदि जल्द समाधान नहीं निकाला गया, तो यह भारत के निर्यात कारोबार को तगड़ा झटका दे सकता है।
American market का रुख: घरेलू उद्योगों की सुरक्षा की दलील
American market की ओर से यह टैरिफ बढ़ोतरी घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के नाम पर की गई है। ‘American market फर्स्ट’ नीति के तहत American market सरकार यह दावा कर रही है कि कुछ आयातित उत्पादों की वजह से उनके घरेलू मैन्युफैक्चरर्स को नुकसान हो रहा है, इसलिए उन पर शुल्क बढ़ाना आवश्यक हो गया है।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से वैश्विक व्यापार संतुलन बिगड़ सकता है और यह विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों का भी उल्लंघन हो सकता है।
सरकार से क्या चाहते हैं व्यापारी?
व्यापारियों और निर्यातकों की मुख्य मांग है कि भारत सरकार इस मुद्दे को American market के समक्ष राजनयिक स्तर पर उठाए और व्यापारिक संधियों के जरिए राहत दिलवाए। इसके अलावा, वे चाहते हैं कि केंद्र सरकार टैरिफ बढ़ोतरी के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए कुछ वित्तीय राहत पैकेज की भी घोषणा करे।

भारतीय निर्यात महासंघ (FIEO) ने भी केंद्र से आग्रह किया है कि वे American market के साथ उच्चस्तरीय वार्ता करें और यह सुनिश्चित करें कि भारतीय निर्यातकों को कोई नुकसान न हो।
क्या कहती है सरकार?
सरकारी सूत्रों के अनुसार, वाणिज्य मंत्रालय और विदेश मंत्रालय इस मसले पर नजर बनाए हुए हैं और American market के साथ कूटनीतिक बातचीत जारी है। हालांकि, आधिकारिक रूप से कोई बड़ा बयान अभी तक सामने नहीं आया है।
सरकार की प्राथमिकता यह है कि व्यापारिक संबंध प्रभावित न हों और साथ ही देश के निर्यातकों को प्रोत्साहन मिलता रहे। यह भी संभव है कि भारत अपनी ओर से कुछ रियायतें देने के बदले अमेरिका से भी व्यापार में नरमी की अपील करे।
आर्थिक विश्लेषकों की राय
वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की यह नीति अल्पकालिक हो सकती है लेकिन भारत जैसे उभरते बाजारों के लिए यह चेतावनी की तरह है। उन्हें अब वैकल्पिक बाजारों की ओर भी ध्यान देना होगा, जैसे यूरोप, मिडल ईस्ट, साउथ ईस्ट एशिया आदि, ताकि अमेरिका पर निर्भरता कम की जा सके।
कुछ जानकार यह भी सुझाव दे रहे हैं कि भारत को फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (FTAs) पर तेजी से काम करना चाहिए, जिससे भविष्य में ऐसे झटकों से बचा जा सके।

निष्कर्ष
अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ोतरी का फैसला भारत के निर्यात कारोबार के लिए एक कठिन चुनौती बनकर सामने आया है। जब तक भारत और अमेरिका के बीच इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट सहमति नहीं बनती, तब तक व्यापारियों की परेशानी बनी रहेगी। ऐसे में केंद्र सरकार की भूमिका और सक्रियता अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर न केवल व्यापार पर पड़ेगा, बल्कि इससे रोजगार और आर्थिक विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
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