Delimitation Row: CM स्टालिन की अगुवाई में चेन्नई में आज विपक्षी नेताओं की बड़ी बैठक!
देश में परिसीमन (Delimitation) CM को लेकर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित परिसीमन प्रक्रिया के विरोध में आज चेन्नई में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की जा रही है, जिसमें देशभर के कई विपक्षी दलों के नेता शामिल होंगे। इस बैठक की अगुवाई तमिलनाडु के CM एम. के. स्टालिन कर रहे हैं।CM विपक्षी दलों का आरोप है कि परिसीमन प्रक्रिया दक्षिणी राज्यों के साथ अन्याय करेगी और यह जनसंख्या के आधार पर संसदीय सीटों के पुनर्वितरण की एक अनुचित योजना है।
परिसीमन विवाद क्या है?
परिसीमन का अर्थ है किसी क्षेत्र में लोकसभा और विधानसभा सीटों के पुनर्वितरण की प्रक्रिया। यह प्रक्रिया प्रत्येक जनगणना के बाद की जाती है, ताकि जनसंख्या के अनुपात में संसदीय और विधानसभा सीटों का निर्धारण किया जा सके। वर्तमान परिसीमन को 2001 की जनगणना के आधार पर स्थगित कर दिया गया था, लेकिन 2026 में इसके फिर से लागू होने की संभावना है।

विपक्षी दलों का कहना है कि यदि परिसीमन जनसंख्या के आधार पर किया गया, तो उत्तर भारतीय राज्यों को अधिक संसदीय सीटें मिलेंगी, जबकि दक्षिण भारतीय राज्यों, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण पर बेहतर काम किया है, उन्हें नुकसान उठाना पड़ेगा।
बैठक में कौन-कौन होंगे शामिल?
तमिलनाडु के CM एम. के. स्टालिन ने विपक्षी नेताओं को एकजुट करने के लिए इस बैठक का आयोजन किया है। इस बैठक में शामिल होने वाले प्रमुख नेताओं में शामिल हैं:
- कांग्रेस: मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी
- टीएमसी: ममता बनर्जी
- एनसीपी: शरद पवार
- शिवसेना (उद्धव गुट): उद्धव ठाकरे
- डीएमके: एम. के. स्टालिन
- आम आदमी पार्टी: अरविंद केजरीवाल
- लेफ्ट पार्टियां: सीताराम येचुरी, डी. राजा
इसके अलावा, कई अन्य क्षेत्रीय दलों के नेता भी इस बैठक में भाग लेंगे।
विपक्ष का आरोप – दक्षिणी राज्यों के साथ अन्याय!
विपक्ष का मानना है कि परिसीमन का यह प्रस्ताव दक्षिण भारतीय राज्यों के खिलाफ एक साजिश है।CM उनका कहना है कि उत्तर भारत के राज्यों की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है, जबकि दक्षिणी राज्यों ने परिवार नियोजन और शिक्षा के कारण अपनी जनसंख्या को नियंत्रित किया है। ऐसे में यदि परिसीमन किया जाता है, तो दक्षिणी राज्यों की संसदीय सीटें कम हो सकती हैं, जबकि उत्तर भारत की सीटें बढ़ सकती हैं।
डीएमके प्रमुख स्टालिन ने कहा,
“हमने जनसंख्या नियंत्रण को प्राथमिकता दी, लेकिन अब हमें ही इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। यह संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।”
ममता बनर्जी ने कहा,
“बीजेपी CM सरकार देश को विभाजित करने की कोशिश कर रही है। हम ऐसा नहीं होने देंगे।”

भाजपा का पलटवार – “परिसीमन जरूरी”
इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी (BJP)CM ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा CM का कहना है कि परिसीमन एक संवैधानिक प्रक्रिया है और इसका उद्देश्य संसदीय प्रतिनिधित्व को समान बनाना है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा,
“परिसीमन एक संवैधानिक प्रक्रिया है और इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। यह लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए किया जा रहा है।”
क्या कहता है संविधान?
संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है, जो जनसंख्या के आधार पर संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों का निर्धारण करता है। हालांकि, 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए परिसीमन को 2001 तक रोक दिया गया था। 2001 के बाद, इसे 2026 तक स्थगित कर दिया गया। अब, 2026 में यह फिर से लागू होने की संभावना है।
आंदोलन और विरोध प्रदर्शन
इस बैठक से पहले, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे दक्षिणी राज्यों में विपक्षी दलों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए हैं। कई राज्यों में डीएमके, कांग्रेस और अन्य दलों ने रैलियां की हैं और इसे “दक्षिण भारत के खिलाफ अन्याय” करार दिया है।

क्या होगा बैठक का परिणाम?
इस बैठक के बाद विपक्षी दल एक संयुक्त बयान जारी कर सकते हैं, जिसमें परिसीमन के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का संकल्प लिया जाएगा। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट जाने की भी संभावना जताई जा रही है।
निष्कर्ष
परिसीमन विवाद भारतीय राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। विपक्षी दल इसे “दक्षिण भारत के साथ भेदभाव” बता रहे हैं, जबकि भाजपा इसे संविधान सम्मत प्रक्रिया कह रही है। अब देखना होगा कि इस बैठक के बाद विपक्षी दल इस मुद्दे को किस तरह आगे बढ़ाते हैं और क्या यह आने वाले चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरता है।