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Waqf एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, सरकार की दलीलें कितनी मजबूत 2025

Waqf एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, सरकार की दलीलें कितनी मजबूत

Waqf कानून को लेकर इन दिनों देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट में बेहद अहम सुनवाई चल रही है। यह मामला सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और संवैधानिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। केंद्र सरकार के बनाए वक्फ अधिनियम (Waqf Act) 1995 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान अदालत ने कई गंभीर सवाल उठाए हैं, जो ना सिर्फ कानून की वैधता पर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि इसकी प्रक्रिया, पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर भी चिंताएं जताते हैं।

क्या हैWaqf एक्ट?

Waqf एक्ट 1995 के तहत मुस्लिम समुदाय द्वारा अपनी संपत्तियों को धार्मिक, परोपकारी और सामाजिक उपयोग के लिए ‘वक्फ’ घोषित किया जाता है। इसके लिए वक्फ बोर्ड का गठन किया गया है, जो इन संपत्तियों का प्रबंधन करता है। देशभर में लाखों एकड़ जमीन और हजारों प्रॉपर्टी वक्फ बोर्ड के अधीन आती हैं।

सुप्रीम कोर्ट में क्यों उठा मुद्दा?

हाल ही में कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती दी है। याचिकाओं में आरोप है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (धार्मिक आधार पर भेदभाव का निषेध) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है। उनका कहना है कि वक्फ एक्ट अन्य धर्मों की तुलना में केवल एक समुदाय को विशेष लाभ देता है, जो संविधान की भावना के विरुद्ध है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कई तीखे सवाल पूछे। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा कि क्या केंद्र सरकार अन्य धर्मों के लिए भी इसी तरह का संपत्ति प्रबंधन बोर्ड बनाएगी? क्या हिन्दू, सिख, ईसाई या जैन समुदायों की धार्मिक संपत्तियों के लिए कोई वैधानिक ढांचा उपलब्ध है जो वक्फ बोर्ड जैसा हो?

अदालत ने यह भी पूछा कि यदि कोई संपत्ति वक्फ घोषित कर दी जाती है, तो क्या उस पर दावा करने वाले अन्य पक्षों को उचित सुनवाई का अवसर दिया जाता है या नहीं? साथ ही, क्या वक्फ बोर्ड के पास असीमित अधिकार हैं किसी भी संपत्ति को ‘वक्फ’ घोषित करने के?

सरकार की दलीलें

केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि Waqf एक्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आता है, और यह केवल समुदाय की धार्मिक और परोपकारी जरूरतों को पूरा करने के लिए है। सरकार का तर्क है कि यह कानून किसी अन्य धर्म के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता। साथ ही, वक्फ बोर्ड को कानूनी तरीके से नियंत्रित किया जाता है और अगर किसी को संपत्ति पर आपत्ति है तो वह कोर्ट का रुख कर सकता है।

सरकार ने यह भी कहा कि Waqf संपत्तियों का रिकॉर्ड पूरी तरह पारदर्शी रखा जाता है और इनमें किसी भी अनियमितता की जांच की प्रक्रिया तय है।

याचिकाकर्ताओं का तर्क

दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि Waqf बोर्ड को “अत्यधिक अधिकार” दिए गए हैं, जो लोकतांत्रिक और न्यायिक मूल्यों के विरुद्ध है। उनका दावा है कि एकतरफा तरीके से संपत्तियों को वक्फ घोषित कर दिया जाता है, और असली मालिक को इसका पता भी नहीं चलता। कई बार सरकारी या निजी जमीनें भी वक्फ घोषित कर दी जाती हैं, जिससे विवाद पैदा होता है।

एक याचिकाकर्ता ने दलील दी कि यह कानून “राज्य की धर्मनिरपेक्षता” की भावना के विपरीत है, क्योंकि किसी एक धर्म के लिए विशेष प्रशासनिक ढांचा बनाया गया है।

आगे क्या?

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फिलहाल कोई अंतिम फैसला नहीं दिया है, लेकिन उसने संकेत दिए हैं कि इस कानून की वैधता की गहराई से जांच की जाएगी। कोर्ट का रुख यह दर्शाता है कि आने वाले समय में वक्फ एक्ट पर कोई बड़ी टिप्पणी या निर्देश आ सकते हैं।

अगर अदालत इस कानून को असंवैधानिक घोषित करती है या इसमें बड़े संशोधनों की सिफारिश करती है, तो यह सरकार के लिए एक बड़ा झटका होगा। वहीं, अगर अदालत सरकार की दलीलों से सहमत होती है, तो यह वक्फ बोर्ड की वैधता को और मजबूत करेगा।

निष्कर्ष

वक्फ एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई भारत के संवैधानिक ढांचे, धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा और संपत्ति के अधिकार जैसे मूलभूत विषयों से जुड़ी है। यह मामला एक नजीर बन सकता है कि कैसे धार्मिक संस्थानों और समुदायों के अधिकार, संविधान के भीतर संतुलन के साथ संचालित होने चाहिए। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में किस दिशा में फैसला सुनाता है – सरकार को राहत मिलती है या इस कानून पर रोक लगती है।

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