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किसी को ‘मियां-तियां, पाकिस्तानी’ कहना गलत भले हो लेकिन अपराध नहीं’, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला 2025

किसी को ‘मियां-तियां, पाकिस्तानी’ कहना गलत भले हो लेकिन अपराध नहीं’, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी को ‘मियां-तियां, पाकिस्तानी’ कहना गलत हो सकता है, लेकिन यह भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक कि इससे हिंसा भड़कने या सार्वजनिक शांति भंग होने का खतरा न हो। यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपमानजनक भाषा के बीच की महीन रेखा को दर्शाता है, और इस बात पर जोर देता है कि हर अपमानजनक टिप्पणी को आपराधिक नहीं माना जा सकता।

, सुप्रीम कोर्ट

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला एक विशेष समुदाय के सदस्यों के खिलाफ की गई अपमानजनक टिप्पणियों से संबंधित था। शिकायतकर्ता का आरोप था कि आरोपियों ने उन्हें ‘मियां-तियां, पाकिस्तानी’ कहकर संबोधित किया, जिससे उन्हें मानसिक पीड़ा हुई और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा। निचली अदालत ने आरोपियों को IPC की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया था, जिसमें मानहानि और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोप शामिल थे।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस फैसले को पलट दिया, और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हालांकि इस तरह की टिप्पणियां अपमानजनक और दुखद हो सकती हैं, लेकिन इन्हें स्वचालित रूप से आपराधिक नहीं माना जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट का तर्क:

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जोर दिया:

  1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का महत्व: सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को रेखांकित किया। न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक लोकतांत्रिक समाज का एक अनिवार्य पहलू है, और इसे केवल उचित प्रतिबंधों के अधीन सीमित किया जा सकता है।
  2. उचित प्रतिबंध: न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जैसे कि मानहानि, न्यायालय की अवमानना, या सार्वजनिक व्यवस्था का उल्लंघन। हालांकि, इन प्रतिबंधों को संकीर्ण रूप से लागू किया जाना चाहिए, ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अनावश्यक रूप से प्रतिबंधित न किया जाए।
  3. मानहानि का मामला: मानहानि के मामले में, यह साबित करना आवश्यक है कि आरोपी ने जानबूझकर या लापरवाही से झूठा बयान दिया था, जिससे शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे कि आरोपियों ने जानबूझकर शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से ऐसी टिप्पणियां की थीं।
  4. सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का मामला: सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के मामले में, यह साबित करना आवश्यक है कि आरोपी के शब्दों या कार्यों से विभिन्न धार्मिक या जातीय समूहों के बीच दुश्मनी या घृणा पैदा होने की संभावना थी। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे कि आरोपियों की टिप्पणियों से वास्तव में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा था या सार्वजनिक शांति भंग हुई थी।

फैसले का महत्व:

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपमानजनक भाषा के बीच एक महत्वपूर्ण संतुलन स्थापित करता है। यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को अपनी राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता है, भले ही उनकी राय कुछ लोगों को आपत्तिजनक लगे। हालांकि, यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है, और इसे उन मामलों में प्रतिबंधित किया जा सकता है जहां यह हिंसा भड़काने या सार्वजनिक शांति भंग करने की संभावना रखती है।

यह फैसला उन लोगों के लिए एक चेतावनी भी है जो अपमानजनक भाषा का उपयोग करते हैं। हालांकि इस तरह की भाषा को हमेशा अपराध नहीं माना जाएगा, लेकिन यह अनैतिक और सामाजिक रूप से अस्वीकार्य है। लोगों को दूसरों के प्रति सम्मानजनक होना चाहिए, भले ही वे उनसे असहमत हों।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक सद्भाव के बीच संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को अपनी राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता है, जबकि यह भी स्पष्ट करता है कि अपमानजनक भाषा का उपयोग करने के परिणाम हो सकते हैं। यह फैसला कानून के शासन और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सुप्रीम कोर्ट की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह एक स्वस्थ और सहिष्णु समाज के निर्माण में मदद करेगा जहां विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों का सम्मान किया जाता है

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