जागरण संपादकीय: Murshidabad के शरणार्थियों का दर्द, ममता सरकार को बदलना होगा रवैया
परिचय
पश्चिम बंगाल, विशेषकर Murshidabad जैसे जिलों में, हाल के समय में राजनीतिक हिंसा और उसके बाद उपजे मानवीय संकट की खबरें लगातार चिंता पैदा कर रही हैं। चुनाव परिणामों के बाद भड़की हिंसा ने कई लोगों को अपना घर-बार छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। ये लोग किसी दूसरे देश से नहीं आए हैं, बल्कि अपने ही राज्य के भीतर शरणार्थी बनने को मजबूर हैं। मुर्शिदाबाद और आसपास के इलाकों से विस्थापित हुए इन नागरिकों का दर्दनाक अनुभव राज्य की कानून-व्यवस्था और सत्ताधारी दल के रवैये पर गंभीर सवाल खड़े करता है। जागरण संपादकीय इस संवेदनशील मामले पर प्रकाश डालता है और ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार से अपेक्षा करता है कि वह इस संकट के प्रति अपना उदासीन और पक्षपातपूर्ण रवैया बदले।

Murshidabad के शरणार्थियों की व्यथा
Murshidabad, जो राजनीतिक रूप से संवेदनशील जिला रहा है, हिंसा की घटनाओं का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। जिन परिवारों को राजनीतिक दुश्मनी या प्रतिशोध का शिकार बनाया गया है, उन्हें जान बचाने के लिए अपने ही घरों से भागना पड़ा है। ये लोग गांवों को छोड़कर अस्थायी शिविरों में, या पड़ोसी राज्यों में शरण लेने के लिए मजबूर हैं। उनकी व्यथा सिर्फ संपत्ति के नुकसान तक सीमित नहीं है; यह सुरक्षा की भावना का टूटना, अनिश्चित भविष्य का डर और अपने ही राज्य द्वारा उपेक्षित महसूस करने का गहरा दर्द है।
इन “शरणार्थियों” में बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग शामिल हैं, जिन्हें बुनियादी सुविधाओं के अभाव में कठिन परिस्थितियों में रहना पड़ रहा है। उनके खेत-खलिहान छूट गए हैं, रोजगार छिन गया है और सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि अपने ही देश में, अपने ही राज्य में, अपनी ही भाषा बोलने वाले लोगों के बीच, किसी को केवल राजनीतिक संबद्धता या संदेह के आधार पर इस तरह विस्थापित होना पड़े। यह स्थिति किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है और राज्य सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी पर सीधी उंगली उठाती है।
राज्य सरकार का उदासीन रवैया
जागरण संपादकीय का मुख्य आरोप ममता बनर्जी सरकार के रवैये पर है। संपादकीय मानता है कि इस मानवीय संकट को संभालने में राज्य सरकार का दृष्टिकोण निराशाजनक रहा है। हिंसा को रोकने और प्रभावितों को सुरक्षा तथा राहत प्रदान करने के बजाय, सरकार पर आरोप है कि वह या तो Murshidabad बनी रही या स्थिति की गंभीरता को कम करके आंकने की कोशिश करती रही।

राज्य सरकार का यह रवैया कई स्तरों पर आपत्तिजनक है:
- कर्तव्यविमुखता: राज्य सरकार की पहली और सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, चाहे उनकी राजनीतिक निष्ठा कुछ भी हो। हिंसा को नियंत्रित करने और पीड़ितों की मदद करने में विफलता स्पष्ट रूप से इस संवैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन है।
- राजनीतिक पक्षपात: आरोप यह है कि राज्य मशीनरी (पुलिस और प्रशासन) पीड़ितों की मदद करने में पक्षपात कर रही है। जिन लोगों को सत्ताधारी दल के विरोधी के रूप में देखा जाता है, उन्हें अक्सर पर्याप्त सुरक्षा या राहत नहीं मिल पाती है। यह राजनीतिक प्रतिशोध का ही एक रूप है जो प्रशासन के निष्पक्ष चरित्र को नष्ट करता है।
- उदासीनता और संवेदनहीनता: हजारों लोगों के विस्थापन और उनकी दयनीय स्थिति के बावजूद, राज्य सरकार की ओर से त्वरित, प्रभावी और संवेदनशील प्रतिक्रिया का अभाव दिखाई देता है। पीड़ितों के प्रति सहानुभूति दिखाने या उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाने के बजाय, इस मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से देखा जा रहा है।
- सत्य से मुंह मोड़ना: स्थिति की भयावहता को स्वीकार करने के बजाय, सरकार पर आरोप है कि वह हिंसा की घटनाओं को मामूली बता रही है या उन्हें राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रही है, ताकि अपनी जिम्मेदारी से बचा जा सके।
क्यों बदलना होगा रवैया?
जागरण संपादकीय इस बात पर जोर देता है कि ममता सरकार को अपना रवैया तुरंत बदलना होगा क्योंकि यह न केवल मानवीय संकट है, बल्कि राज्य के शासन और लोकतंत्र के भविष्य के लिए भी खतरनाक है।
- मानवीय आधार पर: सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, यह हजारों नागरिकों के जीवन और गरिमा का सवाल है। किसी भी सरकार का नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों की रक्षा करे और संकट के समय उनकी मदद करे।
- कानून-व्यवस्था और शासन: यदि सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफल रहती है और नागरिकों को असुरक्षित महसूस करने देती है, तो यह राज्य में शासन की विफलता का संकेत है। यह राज्य की छवि को खराब करता है और भविष्य में भी ऐसी घटनाओं को बढ़ावा दे सकता है।
- लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्य: लोकतंत्र में सभी नागरिकों को बिना किसी डर के रहने और अपने राजनीतिक विचार रखने का अधिकार है। राजनीतिक हिंसा और उसके बाद विस्थापन इन मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन है। एक निर्वाचित सरकार का दायित्व है कि वह इन अधिकारों की रक्षा करे, न कि उन्हें कमजोर करे।
- विश्वास की बहाली: राज्य सरकार के रवैये ने जनता, विशेषकर प्रभावित समुदायों के बीच, विश्वास को गंभीर रूप से क्षति पहुंचाई है। इस विश्वास को बहाल करने के लिए सरकार को निष्पक्षता और जवाबदेही दिखानी होगी।
आगे की राह और जागरण की अपेक्षाएं
जागरण संपादकीय मानता है कि ममता सरकार को इस मुद्दे पर अपने रुख में आमूलचूल परिवर्तन लाना होगा। संपादकीय राज्य सरकार से निम्नलिखित कदम उठाने की अपेक्षा करता है:
- हिंसा पर पूर्ण विराम: सबसे पहले, राज्य में हर कीमत पर राजनीतिक हिंसा को तत्काल रोका जाए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए, चाहे वे किसी भी दल से जुड़े हों।
- निष्पक्ष जांच: सभी हिंसक घटनाओं और विस्थापन के कारणों की निष्पक्ष और त्वरित जांच कराई जाए ताकि जिम्मेदार लोगों को दंडित किया जा सके।
- सुरक्षा की गारंटी: विस्थापित हुए नागरिकों को उनके घरों में सुरक्षित वापसी की गारंटी दी जाए और उनके क्षेत्रों में पर्याप्त सुरक्षा बल तैनात किए जाएं।
- राहत और पुनर्वास: प्रभावित परिवारों को तत्काल राहत सामग्री, वित्तीय सहायता और उनके घरों के पुनर्निर्माण या मरम्मत के लिए मदद प्रदान की जाए। उनके जीवन को पटरी पर लाने में हर संभव सहायता की जाए।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति: मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करना चाहिए और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संयम बरतने तथा हिंसा से दूर रहने का स्पष्ट संदेश देना चाहिए। प्रशासन को बिना किसी राजनीतिक दबाव के काम करने की छूट देनी चाहिए।
- संवाद और विश्वास निर्माण: प्रभावित समुदायों और विपक्ष के साथ संवाद स्थापित कर विश्वास निर्माण के प्रयास किए जाने चाहिए।

निष्कर्ष
Murshidabad और पश्चिम बंगाल के अन्य हिस्सों में राजनीतिक हिंसा के कारण विस्थापित हुए लोगों का दर्द एक गंभीर मानवीय और शासन का मुद्दा है। जागरण संपादकीय का मानना है कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार का इस मुद्दे पर अब तक का रवैया निराशाजनक रहा है। सरकार को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, राजनीतिक पक्षपात छोड़कर सभी नागरिकों के प्रति समान व्यवहार करना होगा और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन करना होगा। जब तक सरकार अपना रवैया नहीं बदलती और पीड़ितों को न्याय व सुरक्षा नहीं मिलती, तब तक पश्चिम बंगाल में सामान्य स्थिति बहाल नहीं हो सकती और लोकतंत्र के मूल सिद्धांत खतरे में रहेंगे। यह समय निष्क्रियता या बहाने बनाने का नहीं, बल्कि त्वरित और निर्णायक कार्रवाई का है ताकि Murshidabad के शरणार्थी अपने घरों में गरिमा और सुरक्षा के साथ लौट सकें।
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