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तमिलनाडु में BJP की नई रणनीति, ‘द्रविड़ राजनीति’ को देगी सीधी टक्कर 2025

तमिलनाडु में BJP की नई रणनीति, ‘द्रविड़ राजनीति’ को देगी सीधी टक्कर

तमिलनाडु कीBJP राजनीति लंबे समय से क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व में रही है, खासकर द्रविड़ आंदोलन से जुड़े डीएमके (DMK) और एआईएडीएमके (AIADMK) जैसे दलों का दबदबा रहा है। इन पार्टियों ने दशकों तक ‘तमिल पहचान’, ‘हिंदी विरोध’, और ‘सामाजिक न्याय’ जैसे मुद्दों को लेकर वोटरों को अपने पक्ष में रखा है। लेकिन अब भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस स्थायी समीकरण को तोड़ने की कोशिश में है।

2024 के लोकसभा चुनावों में दक्षिण भारत में मिली सीमित सफलता के बाद BJP ने अब तमिलनाडु में अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए एक दीर्घकालिक योजना तैयार की है। पार्टी का लक्ष्य अब 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों में एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरना है। इसके लिए BJP ने ‘द्रविड़ राजनीति’ के खिलाफ ‘राष्ट्रवाद’ की एक नई धारा खड़ी करने का मन बना लिया है।


‘द्रविड़ राजनीति’ बनाम ‘राष्ट्रवाद’ की जंग

तमिलनाडु की राजनीति में ‘द्रविड़ विचारधारा’ की शुरुआत 20वीं सदी में पेरियार द्वारा शुरू किए गए सामाजिक आंदोलन से हुई थी। यह विचारधारा जातिगत समानता, ब्राह्मणवाद के विरोध और तमिल अस्मिता की रक्षा पर आधारित रही है। डीएमके और बाद में एआईएडीएमके ने इसी विचारधारा के सहारे दशकों तक सत्ता में रहकर जनसमर्थन बनाए रखा।

वहीं BJP की विचारधारा राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक एकता और ‘सबका साथ, सबका विकास’ पर आधारित है। पार्टी इस ‘राष्ट्रवादी’ सोच को तमिल समाज के सामने एक नई उम्मीद के तौर पर पेश कर रही है।


भाषा और पहचान की राजनीति

तमिलनाडु में हिंदी विरोध की भावना ऐतिहासिक रूप से गहरी रही है। BJP को अकसर उत्तर भारत केंद्रित और हिंदी-थोपने वाली पार्टी के रूप में देखा गया है। लेकिन अब पार्टी इस छवि को बदलने की दिशा में काम कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों में तमिल संस्कृति की तारीफ, तमिल विद्वानों का सम्मान, और तमिल भाषा को “प्राचीनतम” करार देने जैसे प्रयासों से पार्टी स्थानीय भावनाओं को जोड़ने की कोशिश कर रही है।

BJP नेताओं ने यह स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी तमिल संस्कृति की विरोधी नहीं बल्कि उसकी संरक्षक है। इस संदेश को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए पार्टी ने स्थानीय नेताओं और स्वयंसेवकों की मदद से जमीनी स्तर पर प्रचार अभियान शुरू कर दिया है।


स्थानीय नेतृत्व पर फोकस

BJP अब तमिलनाडु में “दिल्ली से चलने वाली पार्टी” नहीं दिखना चाहती। पार्टी ने स्थानीय चेहरों को आगे लाने की रणनीति अपनाई है। तमिलनाडु BJP अध्यक्ष के. अन्नामलाई को एक उभरते हुए नेता के रूप में देखा जा रहा है जो युवा हैं, स्थानीय हैं और तमिलनाडु की सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान से गहराई से जुड़े हैं।

अन्नामलाई के नेतृत्व में पार्टी ने कई मुद्दों को आक्रामक रूप से उठाया है, जैसे डीएमके सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप, मंदिरों की दुर्दशा, और हिंदू आस्थाओं पर हमले। इससे बीजेपी को जमीनी स्तर पर पहचान मिलने लगी है।


सांस्कृतिक और धार्मिक मुद्दों पर पकड़

BJP तमिलनाडु में मंदिरों की स्वायत्तता, गौ-रक्षा, और धार्मिक परंपराओं के संरक्षण जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठा रही है। इन मुद्दों के जरिए पार्टी उन वर्गों को साधना चाहती है जो खुद को द्रविड़ राजनीति से अलग समझते हैं या उसमें प्रतिनिधित्व की कमी महसूस करते हैं।

पार्टी ने रामायण, भगवान मुरुगन और अन्य स्थानीय धार्मिक प्रतीकों को अपनी प्रचार रणनीति में शामिल किया है ताकि दक्षिण भारत में अपनी स्वीकार्यता को बढ़ाया जा सके।


गठबंधन और सहयोग की नीति

BJP समझ चुकी है कि तमिलनाडु जैसे राज्य में अकेले सत्ता में आना कठिन है। इसलिए पार्टी एआईएडीएमके जैसे पुराने सहयोगियों के साथ फिर से गठबंधन की संभावनाएं तलाश रही है, साथ ही छोटे दलों और प्रभावशाली जातीय समूहों से भी बातचीत कर रही है। 2026 विधानसभा चुनाव से पहले कई गठबंधन समीकरण बदल सकते हैं, और BJP इस दिशा में रणनीतिक तौर पर बढ़ रही है।


निष्कर्ष

तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी एक लंबी राजनीतिक लड़ाई की तैयारी कर रही है। पार्टी जानती है कि द्रविड़ राजनीति की जड़ें गहरी हैं, लेकिन अगर वह स्थानीय मुद्दों, क्षेत्रीय भावनाओं और सांस्कृतिक पहचान को समझते हुए अपनी नीति बनाए, तो आने वाले चुनावों में वह एक मजबूत दावेदार बन सकती है।

बीजेपी की रणनीति साफ है – द्रविड़ राजनीति के पुराने फार्मूलों के मुकाबले एक नया ‘तमिल राष्ट्रवाद’ खड़ा करना, जो सांस्कृतिक गौरव के साथ-साथ विकास और पारदर्शिता की बात करे। अब देखना होगा कि क्या तमिलनाडु की जनता इस नई धारा को अपनाती है या फिर पारंपरिक दलों को ही दोहराती है।


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